भगवद्गीता भारतीय ज्ञानपरम्परा का सार ग्रन्थ है । इसमें समस्त भारतीय चिन्तन परम्परा का ज्ञान निहित है। यह एक निर्विवाद ज्ञानग्रन्थ है, जिसमें ब्रह्म सूत्र, षड्दर्शन, उपनिषद, के ज्ञान के साथ-साथ वैज्ञानिक और सांस्कृतिक ज्ञान समाहित है। देश की गरीबी से संघर्ष करने, उग्रवाद दूर करने, युद्ध, सैन्य, पर्यावरण, प्रबन्धन , समाजशास्त्र, मानव मूल्य के साथ-साथ भारतीय चिन्तन परम्परा के वैज्ञानिक दृष्टिकोण भगवद्गीता में हैं । समस्त ज्ञान-विज्ञान के दर्शन इस ग्रन्थ में होते हैं। विविध ज्ञान-विज्ञान, कला साहित्य, आदि की पृष्ठ भूमि वाला समाज का कोई भी व्यक्ति इसका लाभ प्राप्त कर सकेगा । यह कार्यक्रम वर्तमान में यू.जी.सी. द्वारा तो संचालित नहीं है । किन्तु भारतीय विद्याओं के मर्म को पूरी तरह समझकर प्रायोगिक ज्ञान के साथ श्रेष्ठ व्यक्तित्व सम्पन्न शिक्षित नागरिक का निर्माण भगवद्गीता के इस कार्यक्रम से सम्भव हो सकेगा। रामायण, महाभारत , उपनिषद् एवं विभिन्न दर्शनों के सैद्धान्तिक ज्ञान के व्याहारिक प्रयोग की जानकारी गीता में निहित है। जीवन के लिए यह भारतीय संस्कृति का सर्वोच्च प्रतिमान शिक्षाग्रन्थ है। नेतृत्व की क्षमता विकसित करने,दायित्वबोध सीखने तथा राष्ट्ररक्षा हेतु सजग नागरिक बनने के शैक्षिक सूत्र सम्पूर्ण गीता परम्परा में हैं । भारतीय न्याय भी इसकी मर्यादा का अधिकांश पोषण करता है। राष्ट्रीय शिक्षानीति में मान्य शिक्षा मार्गों , विषयों और विविध ज्ञान विज्ञान के पक्षों को समाज के सभी वर्गों की शिक्षा के लिए प्रस्तुत करना भगवद्गीता में स्नातकोत्तर उपाधि कार्यक्रम का प्रयोजन है। वैदिक ज्ञानराशि भी भगवद्गीता में है। श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत के भीष्मपर्व का अंश है। अध्ययन की परम्परा में कहा जाता है कि गीता का व्यवस्थित अध्ययन कर लेने के पश्चात् व्यक्तित्व निर्माण के लिए अन्य शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार समाज के सभी वर्गों को भारतीय ज्ञान परम्परा के उद्भावक वैदिक साहित्य, विभिन्न शास्त्रों, पुराणों, महाकाव्यों एवं सांस्कृतिक चेतना तथा वैज्ञानिकता से जुडे अधिक से अधिक पक्षों का ज्ञान कराना ही भगवद्गीता में स्नातकोत्तर उपाधि का अभीष्ट है ।