यह कार्यक्रम वैदिक ज्ञान राशि के अन्तर्गत आने वाले उपवेदों के ज्ञान से सम्बन्ध रखता है। इससे समाज के सभी वर्गों को ज्ञान और अर्थ दोनों का लाभ होगा। भारतीय विद्या में छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष वेद का नेत्र है। वास्तुशास्त्र घर, भवन, प्रासाद, मन्दिर, नगर आदि अनेक प्रकार के निर्माण की विधियों और उससे होने वाले लाभ-हानि से सम्बन्धित ज्ञान-विज्ञान को शास्त्र है। इसके नियम सम्बन्धी ग्रन्थ परंपरा से उपलब्ध हैं जो ऋषियों और आचायों से प्राप्त हैं। आधुनिक समय में इसी को आर्किटेक्चर की विद्या माना गया है। सामान्य रूप से वास्तु का अर्थ निवास होता है। अतः भवन ,शिक्षालय, व्यापार गृह, चिकित्सालय अथवा किसी भी प्रकार के व्यावसायिक प्रतिष्ठान तथा निजी निवास के निर्माण में आने वाले विधि विधानों और निषेधों की जानकारी प्रदान करने के लिए इस कार्यक्रम को प्रारम्भ किया गया। पारम्परिक रूप से इसके पाठ्यक्रम में प्राचीन ग्रन्थों का समावेश किया गया है। इसका अध्ययन करने वाले सभी जिज्ञासुओं को वास्तुशास्त्र की व्यापक जानकारी प्राप्त हो सकेगी। समाज के किसी भी संवर्ग का कोई भी व्यक्ति इस कार्यक्रम में प्रवेश के अर्ह होगा। वैदिक ज्ञान राशि से सम्पन्न इस कार्यक्रम का अध्ययन कर लेने पर स्वंय ज्ञान संपन्न होकर समाज को भी प्रेरणा देने में कोई भी सक्षम हो सकेगा।